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अर्थव्यवस्था:विदेशी विनिमय और भारत

अर्थव्यवस्था:विदेशी विनिमय और भारत
विदेशी क्षेत्र एवं विदेशी मुद्रा:-
एक अर्थव्यवस्था की वे सभी आर्थिक गतिविधियाँ जो विदेशी मुद्रा में होती हैं, विदेशी क्षेत्र की परिभाषा में आती हैं।
विदेशी क्षेत्र के उदाहरण:-
निर्यात, आयात, विदेशी निवेश, विदेशी ऋण, चालू खाता, पूंजी खाता, भुगतान संतुलन, आदि। इस प्रकार "विदेशी मुद्रा" का अर्थ भारतीय मुद्रा के अलावा कोई भी अन्य मुद्रा है।दुनिया में 180 विभिन्न प्रकार की आधिकारिक मुद्राएं हैं।अधिकांश अंतरराष्ट्रीय विदेशी मुद्रा व्यापार और भुगतानसाधारणतः अमेरिकी डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो नामक मुद्राओं में किए जाते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार:-
विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां हैं ताकि जरूरत पड़ने पर वह अपनी देनदारियों का भुगतान कर सकें। विदेशी मुद्रा भंडार एक या एक से अधिक मुद्राओं में रखे जाते हैं। ज्यादातर डॉलर और कुछ हद तक यूरो विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल होता है। आर्थिक समीक्षा 2021-22 के मुताबिक अब भारत दुनिया का चौथा सबसे अधिक विदेशी मुद्रा भंडार वाला देश है। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल हैं:-
a) विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ;
b) स्वर्ण भंडार;
c) विशेष आहरण अधिकार (SDR);
d) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ रिज़र्व ट्रेंच
हाल ही में रुपए में रेकॉर्ड गिरावट के साथ ही देश का विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर से नीचे चला गया है जो 3 सितम्बर 2021 के सर्वकालिक उच्च स्तर 642 अरब डॉलर से काफी कम हो गया है जिसके अपने कारण रहे हैं जैसे फेड का ब्याज को घटाना, रूसो-यूक्रेन युद्ध का असर आदि। आयात को कवर करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।‘विदेशी मुद्रा कवर’नाम का एक अनुपात किसी देश की अपने विदेशी ऋणों का भुगतान करने की क्षमता को दर्शाता है।
विनिमय दरों को विनियमित करने की विधियाँ:-
a) निश्चित विनिमय दर प्रणाली:यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा लाई गई वैश्विक मुद्राओं की विनिमय दरों को विनियमित करने की एक विधि है।इस प्रणाली में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा एक विशेष मुद्रा की विनिमय दर तय की जाती थी।मुद्राओं की विनिमय दरों को समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष केद्वारा संशोधित किया जाता था।
b) अस्थायी विनिमय दर प्रणाली:अस्थायी विनिमय दर प्रणाली व्यवस्था वैश्विक मुद्राओं की विनिमय दरों को विनियमित करने की एक और विधि है।यह बाजार तंत्र (यानी घरेलू और विदेशी मुद्राओं की मांग और आपूर्ति) पर आधारित है।अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में, एक घरेलू मुद्रा को विदेशी मुद्रा बाजार में अन्य कई विदेशी मुद्राओं के अनुसार प्रवाह करने और अपना मूल्य निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है।
c) प्रबंधित फ्लोट विनिमय दर प्रणाली:एकप्रबंधित फ्लोट विनिमय दर प्रणाली स्थायी और अस्थाई विनिमय दर प्रणालियों का एक संकर या मिश्रण है।इस प्रणाली में, अर्थव्यवस्था के लिए सरकार विनिमय दर को दो तरीकों से प्रभावित करने का प्रयास करती है, या तो सीधे विदेशी मुद्राओं को बाजार से खरीद कर या बेचकर या फिर अप्रत्यक्ष रूप से, मौद्रिक नीति के माध्यम से (अर्थात, विदेशी मुद्रा बैंक खातों पर ब्याज दरों को कम करना या बढ़ देना, विदेशी निवेश को प्रभावित करना, आदि)। आज, विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं प्रबंधित फ्लोट विनिमय दर प्रणाली पर ही कार्य कर रही हैं।
विदेश विनिमय बाज़ार:-
जिस बाजार में विभिन्न मुद्राओं को खरीदा और बेचा जा सकता है, उस बाजार को विदेशी मुद्रा बाजार कहा जाता है। यह बाजार स्थायी मुद्रा व्यवस्था के साथ काम नहीं करता है।यह एक राष्ट्रीय मुद्रा के किसी अन्य मुद्रा या मुद्राओं के विनिमय के लिए एक संस्थागत ढांचा उपलब्ध कराता है।
भारत में विनिमय दर:-
भारतीय मुद्रा, 'रुपया', 1948 तक ऐतिहासिक रूप से ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग के साथ जुड़ा हुआ था।27 दिसंबर, 1945 को IMF के आने के बाद, भारत सोने या यूएस ($ डॉलर) के संदर्भ में रुपये के विदेशी मूल्य (यानी विनिमय दर) को बनाए रखने के लिए निश्चित मुद्रा प्रणाली में स्थानांतरित हो गया।
a) 1948 में ₹3.30, US$1 के बराबर तय किया गया था।सितंबर 1975 में, भारत ने ब्रिटिश पाउंड से रुपये के विनियमन जुड़ाव को अलग कर दिया और RBI ने विश्व मुद्राओं की टोकरी के विनिमय दर के उतार-चढ़ाव के आधार पर रुपये की विनिमय दर का निर्धारण करना शुरू कर दिया।
b) भारत ने 1992-93 के केंद्रीय बजट में 'उदारीकृत विनिमय दर तंत्र प्रणाली (LERMS)'की घोषणा की और मार्च 1993 में इसे परिचालित किया गया और अपनी स्वयं की पद्धति को अपनाया जिसे 'दोहरी विनिमय दर' के रूप में भी जाना जाता है:एक है 'आधिकारिक दर' औरदूसरा है 'बाजार दर'।RBI रुपये या विदेशी मुद्राओं की मांग और आपूर्ति के माध्यम से विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है क्योंकि यह एक अत्यधिक उतार चढ़ाव वाला सट्टा बाजार है।
c) NEER (नाममात्र प्रभावी विनिमय दर): - यह दरविदेशी मुद्राओं के संदर्भ में घरेलू मुद्रा के द्विपक्षीय विनिमय दरों का भारित औसत होता है।
d) REER (वास्तविक प्रभावी विनिमय दर): - यह दर मुद्रास्फीति के प्रभावों के लिये समायोजित अन्य प्रमुख मुद्राओं के सापेक्ष घरेलू मुद्रा का भारित औसत है ।
रुपए में मूल्यह्रास, अभिवृद्धि, अवमूल्यन, पुनर्मूल्यन:-Girl in a jacket

 

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