Anushka IAS Join Today For Sure Success
Anushka IASAnushka IASAnushka IAS
(Monday- Saturday)
anushkaiasudaipur@gmail.com
Anushka Marg, Sector 3, Udaipur

अर्थव्यवस्था: रुपए की कमजोरी से बढ़ सकती हैं समस्याएं

अर्थव्यवस्था: रुपए की कमजोरी से बढ़ सकती हैं समस्याएं
भारतीय रुपया अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया है। अमरीकी डॉलर के मुकाबले रुपए में रेकॉर्ड गिरावट आई है। आज की तारीख में एक अमरीकी डॉलर 77.65 भारतीय रुपयों के बराबर है, इसको विनिमय दर कहते हैं। इसका अर्थ ये है की अगर आपके पास एक अमरीकी डॉलर है तो इसके बदले आपको 77.65 भारतीय रुपए मिल सकते हैं (आसानी से समझने के नजरिए से हम ब्रोकर के कमीशन आदि को गणना में शामिल नहीं कर रहे हैं)। पिछले वर्ष 28 मई 2021 को एक अमरीकी डॉलर 72.34 भारतीय रुपयों के बराबर था। इसका अर्थ ये हुआ की एक वर्ष में रुपया करीब करीब 7.34% से कमजोर हो गया है जो चिंतनीय है। तो 2 अब आज की हकीकत यह है की एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 77 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया है।



यह गिरावट एक ऐसे दौर में आई है, जब अमरीकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला थमा नहीं है और भारत में मुद्रास्फीति सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है (जिस तरह भारतीय रिजर्व बैंक भारत का केंद्रीय बैंक है, उस तरह संयुक्त राज्य अमेरिका के केंद्रीय बैंक को फेडरल रिज़र्व बैंक कहते हैं, इसे फ़ैड भी कहते हैं। )।


रुपए में रेकॉर्ड गिरावट के साथ ही देश का विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर से नीचे चला गया है (ज्ञात हो की एक बिलियन का अर्थ होता है 1 अरब, तो 600 बिलियन का अर्थ हुआ 600 अरब और अगर इसको आज की विनिमय दर 77.65 भारतीय रुपए के हिसाब से देखें तो ये राशि होती है करीब 46,590 अरब रुपया या करीब 46,59,000 करोड़ भारतीय रुपए, एक और मजेदार तथ्य ये भी है की भारत की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज़ का बाजार पूंजीकरण है करीब 17,18,000 करोड़, इसका अर्थ ये हुआ की भारत के पास जो विदेशी मुद्रा भंडार है उसमें करीब 2.71 रिलायंस इंडस्ट्रीज़ या जाए)।


विदेशी मुद्रा भंडार का गिरना किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप तो किया है किया, लेकिन उसकी मंशा गिरावट को थामना था, न कि गिरावट के रुख को बदलना। अब रिजर्व बैंक को भारतीय रुपए को मजबूत बनाने के लिए कदम उठा ही था सो आरबीआई ने भारतीय रुपए की मजबूती के लिए डॉलर की काफी बिकवाली की है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार 3 सितम्बर 2021 के सर्वकालिक उच्च स्तर 642 अरब डॉलर से 45 अरब डॉलर कम हो गया। मौजूदा अनिश्चितता को देखते हुए आरबीआइ विदेशी मुद्रा भंडार को 600 अरब डॉलर पर बनाए रखना चाहती है। हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार अब भी 12 महीने के आयात के लिए काफी है, लेकिन इसमें तेजी से कमी आ सकती है।


दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमरीका में महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर है। इस महंगाई से निपटने के लिए अमरीकी फेडरल रिजर्व ने करीब चार वर्ष बाद ब्याज दरों में वृद्धि की घोषणा की है और इस साल इस तरह की छह और बढ़ोतरी के स्पष्ट संकेत दिए हैं। वर्ष के अंत तक फेडरल ब्याज दरें 1.75 फीसदी से 2 फीसदी के बीच होंगी, जबकि 2023 के अंत तक फेडरल ब्याज दरें 2.8 प्रतिशत तक पहुंच सकती हैं। इससे पूर्व अमरीका में ब्याज दर लगभग शून्य पर थी। अमरीकी केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि से दुनिया भर के निवेशक अब अमरीका की ओर जा रहे हैं। वैश्विक निवेशक दुनिया भर की संपत्तियों में निवेश करने के लिए शून्य या कम ब्याज दरों वाले देशों से उधार लेते हैं। इसे ही ‘कैरी ट्रेड’ कहते हैं। अमरीका में ब्याज दर इस बढ़ोतरी से पूर्व लगभग शून्य थी। ऐसे में निवेशक वहां से लोन लेकर भारत सहित अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करते थे, जहां ब्याज दर ज्यादा है। कोरोना काल में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी के पीछे यही ‘कैरी ट्रेड’ था, परन्तु अब ‘कैरी ट्रेड’ उलट रहा है। यही कारण है कि विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार बिकवाली कर अपना निवेश निकाल रहे हैं। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में अप्रेल से लेकर अब तक भारतीय बाजार से 5.8 अरब डॉलर का विदेशी निवेश निकाला जा चुका है। ऐसे में रुपए पर दबाव स्वाभाविक है।


भारतीय नीति निर्माता समुचित प्रबंधन द्वारा रुपए की गिरावट को रोक सकते हैं। वर्ष 2008 से 2011 के दौरान भी वैश्विक आर्थिक परिदृश्य संकटपूर्ण रहा था, लेकिन भारतीय रुपया लगातार मजबूत हो रहा था। रुपए की कमजोरी से डीजल-पेट्रोल महंगे हो सकते हैं। खाद्य तेल के भी महंगा होने की आशंका है, परन्तु रुपए की कमजोरी से निर्यातकों को लाभ हो सकता है। उच्च निर्यात द्वारा भारत न केवल व्यापार संतुलन, डॉलर स्टॉक इत्यादि में वृद्धि का लाभ ले सकता है, अपितु भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकता है। इसके लिए युद्ध स्तर की तैयारी की आवश्यकता है।


इसके बावजूद यह ध्यान रखना होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था मूलत: आयात आधारित अर्थव्यवस्था है। ऐसे में सरकार को रुपए को मजबूत करने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे। इसका सबसे अच्छा तरीका है, भारतीय उद्योगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अर्थात एफडीआइ को प्रोत्साहित किया जाए। एफडीआइ को प्रोत्साहित करने के लिए अर्थव्यवस्था के मूलभूत तत्वों को मजबूत करने की आवश्यकता है। यही कारण है कि जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो रुपया भी प्राय: मजबूत होता है। निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि ही गिरते रुपए को मजबूत बना सकते हैं।


खोजशब्द: विनिमय दर, मुद्रास्फीति, अमरीकी फेडरल रिजर्व, फेडरल रिज़र्व बैंक, विदेशी मुद्रा भंडार, भारतीय रिजर्व बैंक, कैरी ट्रेड, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

At vero eos et accusamus et iusto odio digni goikussimos ducimus qui to bonfo blanditiis praese. Ntium voluum deleniti atque.

Melbourne, Australia
(Sat - Thursday)
(10am - 05 pm)